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डेस्क: वेदों पुराणों से लेकर धार्मिक आस्थाओं तक, पीपल के वृक्ष का अत्यंत महत्व है। आम
तौर पर सड़कों के किनारे, उद्यानों
और मंदिरों के आस-पास इस वृक्ष को अक्सर देखा जा सकता है। सुदूर आदिवासी अंचलों
में भी पीपल का धार्मिक महत्व तो है ही किंतु आदिवासी इस पेड़ के विभिन्न अंगों को
रोग निवारण के लिए विभिन्न प्रकार के नुस्खों में इस्तेमाल भी करते हैं। भगवान
श्री कृष्ण ने गीता उपदेश में इस वृक्ष की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि पीपल
पेड़ों में उत्तम और दिव्य गुणों से सम्पन्न है और मैं स्वयं पीपल हूं। पीपल के
औषधीय गुणों का बखान आयुर्वेद में भी देखा जा सकता है। आज हम आपको पीपल से जुड़े
कुछ पारंपरिक नुस्खे बताने जा रहे हैं।
इसके
सूखे फल मूत्र संबंधित रोगों के निवारण के लिए काफी कारगर माने जाते हैं। आदिवासी
इसके सूखे फलों का चूर्ण तैयार कर प्रतिदिन एक चम्मच शक्कर या थोड़े से गुड़ के साथ
मिलाकर रोगी को देते हैं। माना जाता है कि इससे पेशाब संबंधित समस्याओं, खासकर प्रोस्ट्रेट की समस्याओं में
रोगी को बेहतर महसूस होता है।
पीपल
के संदर्भ में रोचक जानकारियां और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ
दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. दीपक आचार्य
(डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर
आदिवासी अंचलों, जैसे पातालकोट (मध्य प्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान)
से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से
प्रमाणित करने का कार्य कर रहे हैं।
हर्बल
औषधीय गुणों से भरपूर पीपल के बारे में जानने के लिए क्लिक कीजिए आगे की स्लाइड्स
पर....
मुंह के छाले दूर करता है
मुंह
में छाले हो जाने की दशा में यदि पीपल की छाल और पत्तियों के चूर्ण से कुल्ला किया
जाए तो आराम मिलता है।
नपुंसकता दूर करता है
पीपल
के फल, छाल, जडों और नई कलियों को एकत्र कर दूध
में पकाया जाता है और फिर इसमें घी, शक्कर और शहद मिलाया जाता है, आदिवासियों के अनुसार यह मिश्रण
नपुंसकता दूर करता है।
प्रेग्नेंट होने में मदद करता है
पातालकोट
जैसे आदिवासी बाहुल्य भागों में जिन महिलाओं को संतान प्राप्ति नहीं हो रही हो, उन्हें पीपल वृक्ष पर लगे वान्दा
(रसना) पौधे को दूध में उबालकर दिया जाता है। इनका मानना है कि यह दूध गर्भाशय की
गरमी को दूर करता है जिससे महिला के गर्भवती होने की संभावना बढ़ जाती है।
गुजरात
में भी आदिवासी इलाकों में इसकी कोमल जडों को उस महिला को दिया जाता है जो संतान
प्राप्ति चाहती हैं, माना
जाता है कि इन जडों के सेवन से महिला के गर्भधारण की गुंजाइश ज़्यादा हो जाती है, हालांकि इस तथ्य को लेकर किसी तरह के
क्लीनिकल प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।
दाद-खाज को दूर करता है
पीपल
की एक विशेषता है कि यह चर्म-विकारों जैसे-कुष्ठरोग, फोड़े-फुन्सी, दाद-खाज और खुजली को खत्म करने में
मदद करता है। डांगी आदिवासी पीपल की छाल घिसकर चर्म रोगों पर लगाने की राय देते
हैं।
कुष्ठ
रोग में पीपल के पत्तों को कुचलकर रोगग्रस्त स्थान पर लगाया जाता है तथा पत्तों का
रस तैयार कर पिलाया जाता है।
दमा के रोगियों के लिए उपयोगी
आदिवासी
हर्बल जानकारों के अनुसार, यदि पीपल
की पत्तियों के रस को दमा के रोगी को दिया जाए तो बहुत फायदा मिलता है।
मसूड़ों की समस्या दूर होती है
इसकी
पत्तियों या छाल को कच्चा चबाने और चबाकर थूक देने से मसूड़ों से खून निकलने की
समस्या में आराम मिलता है,आदिवासी
मानते हैं कि इससे मुंह से दुर्गंध भी दूर होती है और यह जीभ का कट फट जाना भी ठीक
कर देता है।
थकान मिटाने के लिए
पीपल
के पेड़ से निकलने वाली गोंद को सेहत के लिए उत्तम माना जाता है, मिश्री या शक्कर के साथ करीब 1 ग्राम गोंद लेने से शरीर में ऊर्जा का
संचार होता है और यह थकान मिटाने के लिए कारगर नुस्खा माना जाता है।
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