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Friday, December 2, 2011

बारहवीं के बाद डिजाइनिंग के क्षेत्र में करियर

वेटरनेरी साइंस का अपने देश में क्या स्कोप है ?
रमेश शर्मा , बहादुरगढ़
देश में पशुओं की काफी बड़ी संख्या है जिनमें दुधारू पशुओं से लेकर अन्य प्रकार के पालतू पशु तक शामिल हैं। इनमें से अधिकतर अपने दूध व मांस के उत्पादनों के कारण महत्वपूर्ण माने जाते हैं , लेकिन इनके स्वास्थ्य की उचित देखभाल नहीं होने और इन्हें रोगों से बचाने की समुचित जानकारियों के अभाव में इनसे विश्व के अन्य देशों के स्तर पर प्रॉडक्शन नहीं हासिल किया जाता है। ऐसे में वेटरनेरी साइंस में ट्रेंड पशु चिकित्सकों का महत्व भारत जैसे विकासशील देश के लिए आसानी से समझा जा सकता है। एमबीबीएस और अन्य मेडिकल साइंस के कोर्सेज की तुलना में इन कोर्सेज में ऐडमिशन भी अपेक्षाकृत आसानी से मिल जाते हैं। 12वीं में बायोलॉजी सहित अन्य विज्ञान विषयों की बैकग्राउंड वाले युवा इसकी चयन परीक्षा में शामिल हो सकते हैं।

डिजाइनिंग
बारहवीं के बाद डिजाइनिंग के क्षेत्र में करियर बनाना चाहती हूं। इस बारे में मुझे जानकारी दें।
- रश्मि श्रीवास्तव , दिल्ली
डिजाइनिंग का क्षेत्र काफी विशाल है और शायद ही कोई ऐसा कार्यक्षेत्र हो जो इससे अछूता हो। छोटे से बड़े लगभग सभी प्रॉडक्ट को तैयार करने में डिजाइनर की अहम भूमिका होती है। कंज्यूमर की पसंद के अनुसार विभिन्न उत्पादों के डिजाइन तैयार करने और साथ ही उनमें सौंदर्यता और आकर्षण को बरकरार रखते हुए पैकिंग के डिजाइन विकसित करने का काम भी इन्हीं पर होता है। फैशन डिजाइनिंग से लेकर , जूलरी डिजाइनिंग ,फर्नीचर डिजाइनिंग , प्रॉडक्ट डिजाइनिंग , ग्राफिक्स डिजाइन आदि ना जाने कितने ही कार्यक्षेत्र हैं जिनमें आप करियर बना सकती हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (निफ्ट) सहित तमाम संस्थानों में इस तरह के कोर्सेज चलाए जाते हैं। प्राय: चार वर्षीय इन कोर्सेज में चयन परीक्षा के आधार पर ऐडमिशन दिए जाते हैं।

ह्यूमैनिटीज
दसवीं के बाद ह्यूमैनिटीज (कला) विषय की स्ट्रीम का चुनाव करना कितना सही कहा जा सकता है?
- नीरा पराशर , दिल्ली
आज के संदर्भ में यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि सभी विषयों के जानकारों की उपयोगिता किसी ना किसी रूप में अवश्य है। संस्कृत और उर्दू से लेकर किसी भी भाषा या विषय का इस बारे में उल्लेख किया जा सकता है। इसीलिए ह्यूमैनिटीज से जुड़े जिआग्रफी , हिस्ट्री , सिविक्स , इकनॉमिक्स सहित समस्त विषयों के जानकारों के किए करियर के पर्याप्त अवसर विभिन्न प्रफेशंस और कार्यकलापों में आज भी बरकरार हैं। लेकिन सबसे आवश्यक यह है कि आप संबंधित विषय के अच्छे ज्ञाता हों। सिर्फ कामचलाऊ जानकारी के आधार पर बेहतरीन करियर बनाने के सपने देखने का कोई लाभ नहीं है।

इकोनोमिक्स ऑनर्स कर चुकी हूँ अब मुझे एम् बी ए करना चाहिए या एम् ए (इकोनोमिक्स ) के बारे में विचार करना चाहिए ?
प्रीति खंडेलवाल , दिल्ली
आप पहले यह तय कर लें कि आप कोर्पोरेट क्षेत्र में करियर बनाना चाहती हैं या एकेडेमिक्स के क्षेत्र में। कोर्पोरेट क्षेत्र की बात है तो आपको एम बी ए करने के बारे में सोचना चाहिए। एम ए (इकोनोमिक्स) अथवा एकेडमिक्स की बात करें तो आपके सामने यूनिवसिर्टी या कॉलेज में लेक्चररशिप का विकल्प हो सकता है। फ्यूचर की दष्टि से किसी को भी कम करके आंकना उचित नहीं होगा.

क्या सिर्फ विदेशी भाषा सीखकर भी करिअर बनाया जा सकता है ?
अभिनव , दिल्ली
ग्लोब्लाइजेशन के इस युग में विदेशी भाषा के जानकारों की मांग काफी तेजी से बढ़ी है। तमाम विदेशी कंपनियां अलग-अलग देशों में कारोबार को बढ़ा रही हैं। ऐसे में उनकी भाषा के जानकार स्थानीय युवाओं की मांग बढ़नी स्वाभाविक है। भारत में एफडीआई के मार्ग विदेशी संस्थानों के लिए 100 फीसदी खोलने की कवायद चल रही है। तब ऐसे जानकारों की जरूरत और बढ़ जाएगी। करियर की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रमुख विदेशी भाषाओं में जापानी , चीनी , जर्मन , फ्रेंच स्पैनिश आदि का नाम लिया जा सकता है , लेकिन यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि विदेशी भाषा का सर्टिफिकेट ही काफी नहीं है। भाषा पर पूरा अधिकार यानी बोलने , समझने और लिखने का समुचित ज्ञान भी जरूरी है।

जर्नलिज्म का कोर्स कर रहा हूं लेकिन प्रैक्टिकल ज्ञान नहीं के बराबर है. मुझे क्या करना चाहिए ?
सौरभ जैन , दिल्ली
आमतौर से इस तरह की दिक्कत जर्नलिज्म (प्रिंट अथवा इलेक्ट्रोनिक )के छात्रों के सामने आती है.इसके समाधान के दो ही तरीके हो सकते हैं. पहला तो है किसी अखबार अथवा टीवी चैनल में इंटर्नशिप कर व्यवहारिक ज्ञान हासिल करना अथवा दूसरा तरीका है किसी मीडिया ट्रेनिंग सस्थान में क्रैश कोर्स कर इस कमी को पूरा किया जाये.खासतौर से इलेक्ट्रोनिक मीडिया में जाने के इच्छुक युवाओं के समक्ष यही समस्या आती है.चूंकि यूनिवसिर्टीज़ के कोसेर्स में सैद्धांतिक ज्ञान पर ही समस्त कोर्स आधारित होता है तो कोई भी संस्थान (खासतौर से इलेक्ट्रोनिक मीडिया) ऐसे छात्रों को इंटर्नशिप देने से कतराते हैं.

Thursday, December 1, 2011

माइक्रोबायॉलजी: द मैक्रो ऑप्शन

बीएससी माइक्रोबायॉलजी में ऐडमिशन लेने के लिए साइंस स्ट्रीम में बायॉलजी विषय के साथ 12वीं कम से कम 50 प्रतिशत अंकों से पास होना चाहिए। इस विषय का चयन तभी करें , जब आपकी रुचि बायॉलजी में हो।

अगर आप साइंस की दुनिया में कुछ करना चाहते हैं , एक मकाम हासिल करना चाहते हैं तो माइक्रोबायॉलजी एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है। वह इसलिए क्योंकि माइक्रोबायोलॉजिस्ट की डिमांड काफी बढ़ गई है। बायॉलजी और केमिस्ट्री के मेल से बनी यह शाखा आज स्टूडेंट्स के बीच काफी लोकप्रिय है। यह फील्ड मुख्य रूप से रिसर्च से जुड़ा हुआ है। तेजी से बढ़ते वैज्ञानिक युग में इस तरह के कोर्स की काफी डिमांड हो गई है। माइक्रोबायोलॉजिस्ट का काम सूक्ष्म जीवाणुओं पर रिसर्च करना होता है। इन जीवाणुओं को हम केवल माइक्रोस्कोप के जरिए ही देख सकते हैं।

कौन कौन से कोर्स
माइक्रोबायॉलजी से संबधित विभिन्न पाठ्यक्रम विभिन्न संस्थानों और यूनिवर्सिटिज में चलाए जा रहे हैं। इनमें बीएससी व बीएससी ऑनर्स माइक्रोबायॉलजी , बीएससी इंडस्ट्रियल व बीएससी ऑनर्स इंडस्ट्रियल माइक्रोबायॉलजी , बीएससी मेडिकल माइक्रोबायॉलजी , एमएससी व एमएससी ऑनर्स माइक्रोबायॉलजी ,एमएससी मेडिकल माइक्रोबायॉलजी प्रमुख है। आप चाहें , तो माइक्रोबायॉलजी के क्षेत्र में माइक्रोबायल फिजियोलॉजी , माइक्रोबायल जेनेटिक्स , मेडिकल माइक्रोबायॉलजी , वेटनरी माइक्रोबायॉलजी ,इन्वाइरनमेंटल माइक्रोबायॉलजी , इवॉल्यूशनरी माइक्रोबायॉलजी , इंडस्ट्रियल माइक्रोबायॉलजी , फूड माइक्रोबायॉलजी , फार्मास्यूटिकल माइक्रोबायॉलजी , ऐरो माइक्रोबायॉलजी और ऑरल माइक्रोबायॉलजी आदि कोसेर्ज में स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं।

कैसे मिलती है एंट्री ?
बीएससी इन माइक्रोबायॉलजी में ऐडमिशन लेने के लिए साइंस स्ट्रीम में बायॉलजी विषय के साथ 12वीं कम से कम 50 प्रतिशत अंकों से पास होना चाहिए। इस विषय का चयन तभी करें , जब आपकी रुचि बायॉलजी में हो। एमएससी में ऐडमिशन के लिए बायॉलजी विषयों के साथ ग्रैजुएट होना चाहिए।

क्या करते हैं माइक्रोबायोलॉजिस्ट ?
इसमें ऐसे सूक्ष्म जीवों का अध्ययन किया जाता है , जिन्हें बगैर सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) के देखना संभव नहीं है। मनुष्यों और पशुओं में होने वाली बीमारियों में इन सूक्ष्म जीवों की भूमिका अहम हैं और इनके उपचार में भी। सूक्ष्म जीवों की मदद से ही दवाओं का निर्माण किया जाता है। सूक्ष्म जीव कई प्रकार के हो सकते हैं , जैसे कृषि के सूक्ष्म जीव , जीवों में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव , इंडिस्ट्रयल सूक्ष्म जीव आदि। ये सूक्ष्म जीव लाभदायक और हानिकारक दोनों हो सकते हैं। इसके अंतर्गत फिजियोलॉजी ऑफ माइक्रोब्स , माइक्रोब्स की जैविक संरचना ,एग्रीकल्चर माइक्रोबायॉलजी , फूड माइक्रोबायॉलजी , बायो फर्टिलाइजर में माइक्रोब्स , कीटनाशक , पर्यावरण, मानवीय बीमारियों आदि में सूक्ष्म जीवों का अध्ययन किया जाता है। पर्यावरण में हम जो कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं , उससे उत्पन्न प्रदूषण को ये सूक्ष्मजीव ही नियंत्रित करते हैं। इसके अलावा दवाओं का निर्माण, कीटनाशकों का निर्माण , विभिन्न खाद्य उत्पादों आदि में सूक्ष्म जीवों की उपयोगिता का अध्ययन भी इसमें किया जाता है।

कहां-कहां इस्तेमाल
माइक्रोबायॉलजी का इस्तेमाल पर्यावरण को संतुलित करने में भी किया जाता है। इसके अलावा , खाद्य संरक्षण ,दवाओं के उद्योग विशेषकर ऐंटिबायॉटिक , फैक्ट्रियों , मेडिकल क्षेत्र , कृषि उत्पादन , पेय पदार्थों के निर्माण ,रसायन फैक्ट्रियों , सुगंध बनाने आदि में इसका काफी उपयोग है।

कहां हैं संजावनाएं
माइक्रोबायोलॉजिस्ट के रूप में आप किसी साइंटिस्ट के साथ रिसर्च कर सकते हैं। इसके अलावा , हॉस्पिटल ,लैबरटरी , क्लीनिक , यूनिवर्सिटी , निजी या सरकारी क्षेत्र , डेयरी प्रॉडक्ट्स , टीचिंग , बियर मेकिंग आदि क्षेत्रों से जुड़ सकते हैं। इस क्षेत्र में आप दवा कंपनियों , लेदर एवं पेपर उद्योग , फूड प्रोसेसिंग , बायोटेक और बायोप्रोसेस संबंधी उद्योग , प्रयोगशालाओं एवं अस्पतालों , जन स्वास्थ्य के कामों में लगे गैर सरकारी संगठनों में भी जा सकते हैं। इसके अलावा , विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षण कार्य भी कर सकते हैं। बायोटेक एवं बायोप्रोसेस संबंधी उद्योग के अलावा विभिन्न मेडिकल कॉलेज में भी अच्छे अवसर हैं।

सैलरी पैकेज
माइक्रोबायोलॉजिस्ट अपनी योग्यता के अनुसार पैसा कमा सकता है। कम से कम 12-15 हजार रुपये से लेकर अनुभव होने पर लाखों रुपये तक हर महीने आमदनी हो सकती है। विदेशों में भी माइक्रोबायोलॉजिस्ट की काफी डिमांड है। विदेश में नौकरी का अवसर मिलने पर आप काफी अच्छा पैसा कमा सकते हैं।
अरविंद कुमार

इंस्टीट्यूट वॉच
- दिल्ली यूनिवसिर्टी , नई दिल्ली
- डॉ. भीमराव आंबेडकर यूनिवसिर्टी , आगरा
- चौधरी चरण सिंह यूनिवसिर्टी , मेरठ
- पुणे यूनिवसिर्टी ,, पुणे
- हिमाचल प्रदेश यूनिवसिर्टी , शिमला
- पंजाब यूनिवसिर्टी ,, चंडीगढ़
- पटना यूनिवसिर्टी , पटना
- भोपाल यूनिवसिर्टी , भोपाल
- मगध यूनिवसिर्टी , बोधगया
- रानी दुर्गावती यूनिवसिर्टी , जबलपुर
- जीवाजी यूनिवसिर्टी , ग्वालियर
- पं. रविशंकर शुक्ल यूनिवसिर्टी , रायपुर
- गोवा यूनिवसिर्टी , गोवा
- कर्नाटक यूनिवसिर्टी , धाड़वाड़
- महात्मा गांधी यूनिवसिर्टी , कोट्टायम
- उस्मानिया यूनिवसिर्टी , हैदराबाद
- मुंबई यूनिवसिर्टी , मुंबई

Friday, November 11, 2011

अगर आपको है बीमा सम्बन्धी कोई शिकायत तो जरुर पढ़ें ये खब

अगर आपको है बीमा सम्बन्धी कोई शिकायत तो जरुर पढ़ें ये खबर

भोपाल. बीमा लेने वालों के हितों की रक्षा के लिए इंश्योरेंस रेग्युलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण) या इरडा ने कई कदम उठाए हैं। बकायदा प्रचार अभियान चलाकर इनके बारे में बीमा धारकों को जागरूक किया जा रहा है।

लेकिन इसमें भी प्रमुख कदम है इंटीग्रेटेड ग्रीवियांस मैनेजमेंट सिस्टम (एकीकृत शिकायत प्रबंधन प्रणाली) या आईजीएमएस, जो बीमा ग्राहकों को ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने का मंच देता है। यहां दर्ज शिकायतों पर क्या प्रगति हुई है, इसकी जानकारी भी ऑनलाइन की जा सकती है। इसके अतिरिक्त ग्रीवियांस सेल (शिकायत प्रकोष्ठ) और बीमा लोकपाल का गठन भी किया गया है।

आइए जानते हैं कि बीमा हितों से जुड़ी शिकायतों को कैसे ऑनलाइन दर्ज कराया जाता है। इसका इस्तेमाल करने से पहले कई जरूरी बातों को ध्यान रखना चाहिए। इनमें भी प्रमुख है कि सबसे पहले बीमा कवर देने वाली कंपनी में ही अपनी शिकायत दर्ज कराई जाए।

पहले बीमा कंपनी

लाइफ इंश्योरेंस से जुड़ी किसी शिकायत में पॉलिसी की शर्तो में बाद में फेरबदल, दावे का निस्तारण करना आदि शामिल हैं। जनरल इंश्योरेंस में दावे का आंशिक भुगतान, देरी या मेडिकल इंश्योरेंस को रीन्यू करना जैसी बातें आती हैं।

बीमा धारक को अगर शिकायत है, तो सबसे पहले उसे बीमा देने वाली कंपनी में अपनी बात रखनी होगी। कंपनी के ब्रांच ऑफिस समेत फोन, -मेल या वेबसाइट पर जाकर शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

ध्यान रखें

बीमा धारक से किसी भी तरह की शिकायत मिलने पर कंपनी को तीन दिन में उसकी लिखित प्राप्ति की सूचना देनी होगी। साथ ही यह भी बताना होगा कि वह कितने दिन में शिकायत का समाधान करेगी। अगर कंपनी शिकायत खारिज करती है, तो उसे इसका लिखित कारण बताना होगा।

यह ध्यान रखना जरूरी है कि बीमा से जुड़ी किसी शिकायत पर आगे बढ़ने से पहले आपको संबंधित कंपनी में अपनी बात रखनी होगी। अगर उसके फैसले से असंतुष्ट हैं तो कंपनी को सूचित करना होगा कि आप विनियामक संस्था की शरण लेने जा रहे हैं।

अगर उपभोक्ता ऐसा नहीं करता है, तो माना जाएगा कि उसे कंपनी के फैसले से कोई शिकायत नहीं है। यह जरूरी प्रावधान ध्यान में रखना ही होगा।

नियामक संस्था से मदद

कंपनी से असंतुष्ट होने पर उपभोक्ता www.igms.irda.gov.in पर शिकायत कराता है, जिसे संबंधित बीमा कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों को प्रेषित कर दिया जाता है। व्यक्तिगत दुर्घटना या स्वास्थ्य संबंधी 20 लाख रुपए तक के दावों को बीमा लोकपाल के सुपुर्द कर दिया जाता है।

शिकायत ऑनलाइन दर्ज कराने के लिए आईजीएमएस की साइट पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। एवज में एक टोकन नंबर मिलेगा, जो चल रही कार्यवाही पर निगाह रखने में मदद करेगा। दर्ज शिकायत को बीमा कंपनी समेत इरडा को भी भेजी जाती है।

ध्यान रखें: आईजीएमएस पर शिकायत दर्ज कराने से पहले उपभोक्ता को संबंधित कंपनी को सूचित करना होगा कि वह विनियामक प्राधिकरण की शरण लेने जा रहा है। इस सूचना के पंद्रह दिनों तक यदि कंपनी से कोई जवाब नहीं मिलता है, तो ही उपभोक्ता ऑनलाइन शिकायत दर्ज करा सकेगा।

शिकायत प्रकोष्ठ

आईजीएमएस के अलावा इरडा ने शिकायत प्रकोष्ठ भी बनाए हैं। यहां आप 155255 फोन नंबर या complaints@irda.gov.in पर शिकायत दर्ज करा सकते हैं। प्रकोष्ठ संबंधित कंपनी को कोई आदेश नहीं देता, लेकिन कंपनी के समक्ष शिकायत उठा सकता है। यहां शिकायत दर्ज कराने के लिए किसी थर्ड पार्टी यानी वकील या एजेंट की मदद नहीं लें, क्योंकि इनके जरिए दर्ज शिकायतों को कोई तरजीह नहीं दी जाती।

बीमा लोकपाल

शिकायत प्रकोष्ठ की तुलना में बीमा लोकपाल संबंधित बीमा कंपनी को आदेश जारी कर सकता है।

ध्यान रखें

शिकायत मिलने पर लोकपाल कार्यालय एक माह के भीतर अनुशंसा जारी करता है, जबकि आदेश के लिए तीन माह की सीमा निर्धारित है। लोकपाल चाहे तो उपभोक्ता को मुआवजा देने के आदेश भी दे सकता है।

उपभोक्ता अदालत

अगर बीमा लोकपाल के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो आप उपभोक्ता अदालत या सिविल कोर्ट की शरण ले सकते हैं, लेकिन इसके लिए पंद्रह दिन के भीतर बीमा लोकपाल को इस प्रक्रिया के बाबत अवगत कराना होगा।

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