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Thursday, April 21, 2011

घर में झाड़ू को छुपाकर रखने से बढ़ता है पैसा...


वास्तुशास्त्र में कई ऐसे उपाय बताए गए हैं जिन्हें अपनाने से घर में धन की आवक बढ़ती है। इन टिप्स से पैसों से जुड़ी सभी समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। यदि आपको भी आर्थिक परेशानियों से निजात चाहिए तो यह उपाय अपनाएं-

शास्त्रों के अनुसार धन से जुड़ी सभी समस्याओं को दूर करने के लिए धन की देवी महालक्ष्मी की आराधना श्रेष्ठ उपाय है। इसके साथ ही सभी के घर में साफ-सफाई के लिए झाड़ू अवश्य ही होती है। झाड़ू को महालक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है जो गंदगी और धूल मिट्टी में निवास करने वाली दरिद्रता को रोज हमारे घर से बाहर करती है।

वास्तु की मान्यता है कि कचरे में कई प्रकार की नकारात्मक शक्तियां विद्यमान होती हैं जो घर और वहां रहने वाले सभी सदस्यों पर बुरा प्रभाव डालती हैं। इसके साथ ही परिवार की सुख-शांति में भी परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं। इनसे निजात पाने के लिए घर को एकदम साफ और स्वच्छ रखने के लिए झाड़ू का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

शास्त्रों में झाड़ू को देवी लक्ष्मी का रूप माना है अत: इसका किसी भी प्रकार से अनादर नहीं होना चाहिए। यदि घर में झाड़ू सबके सामने रखा जाता है तो कई बार अन्य लोगों के पैर उस पर लगते हैं जो कि अशुभ है। इससे घर पर बुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ता है और धन संबंधी परेशानियां भी बढ़ती हैं। इसी वजह से झाड़ू को एक तरफ छुपाकर रखना चाहिए, जहां किसी की नजर ना पहुंच सके। देवी लक्ष्मी का पूरा सम्मान करने पर ही वे हमारे घर पर कृपा बनाए रखेंगी।

Tuesday, April 19, 2011

11वीं में सब्जेक्ट्स... ताकि DU में न हो दिक्कत

10 वीं क्लास का रिजल्ट अभी आया नहीं है लेकिन स्कूलोंने 11 वीं क्लास की पढ़ाई शुरू करवा दी है। इन दिनों स्कूलों मेंइस क्लास के लिए सब्जेक्ट्स तय करने का काम चल रहा है।ऐसे में स्टूडेंट्स को सब्जेक्ट्स का चुनाव करने में सावधानीबरतने की जरूरत है क्योंकि गलत कॉम्बिनेशन आगे की पढ़ाईमें दिक्कत पैदा कर सकता है। 11 वीं में सब्जेक्ट चुनते वक्त किनबातों का ध्यान रखना चाहिए , एक्सपर्ट्स से बात करके बतारहे हैं प्रभात गौड़ :

बोर्ड एग्जाम के बाद 11 वीं में ऐडमिशन के दौरान जब सब्जेक्टचुनने की बारी आती है , तो तीन मुख्य स्ट्रीम होती हैं। ये हैं -साइंस , कॉमर्स और आर्ट्स। स्ट्रीम कोई भी हो , स्टूडेंट्स कोकोई भी पांच सब्जेक्ट चुनने होते हैं। कई बार ज्यादा पर्सेंटेजलाने के लिए स्टूडेंट्स पांच के अलावा एक और सब्जेक्ट ले लेतेहैं।

साइंस स्ट्रीम : साइंस स्ट्रीम में जाने वाले स्टूडेंट्स को इंग्लिश , फिजिक्स और केमिस्ट्री अनिवार्य सब्जेक्ट के रूप में लेनेहोते हैं। इसके अलावा , उनके पास चॉइस होती है कि वे एक वोकेशनल सब्जेक्ट के साथ बायॉलजी चुन लें या एकवोकेशनल सब्जेक्ट के साथ मैथ्स लें। वे बिना वोकेशनल सब्जेक्ट के बायॉलजी और मैथ्स भी चुन सकते हैं। जिन स्टूडेंट्स नेयह तय कर लिया है कि उन्हें 12 वीं के बाद इंजिनियरिंग करनी है , उन्हें मैथ्स चुनना चाहिए। जो मेडिकल लाइन मेंजाना चाहते हैं , उन्हें बायॉलजी रखनी चाहिए। अगर किसी को बायोटेक्नॉलजी या नैनोटेक्नॉलजी जैसा कोई तकनीकीकोर्स करना है तो उसे फिजिक्स , केमिस्ट्री , मैथ्स और बायॉलजी का कॉम्बिनेशन लेना चाहिए।

कॉमर्स स्ट्रीम : कॉमर्स स्ट्रीम में जाने वाले स्टूडेंट्स को अकाउंट्स , बिजनेस स्टडीज , इंग्लिश , इकनॉमिक्स सब्जेक्ट पढ़नेहोते हैं। इसके अलावा मैथ्स ले सकते हैं और अगर मैथ्स लेना नहीं चाहते , तो इसकी जगह सोश्यॉलजी या साइकॉलजी मेंसे कोई एक सब्जेक्ट ले सकते हैं।

ह्यूमैनिटीज ( आर्ट्स ): इसमें कंपलसरी सब्जेक्ट हैं इंग्लिश और एक सेकंड लैंग्वेज जैसे फ्रेंच , संस्कृत या हिंदी।ऑप्शनल सब्जेक्ट में शामिल हैं : पॉलिटिकल साइंस , सोश्यॉलजी , ज्यॉग्रफी , साइकॉलजी , इकनॉमिक्स , हिस्ट्री आदि।

- पांचवें सब्जेक्ट का चुनाव करते वक्त स्टूडेंट्स काफी एक्स्पेरिमेंट भी करते हैं। जैसे साइंस स्ट्रीम वाले इकनॉमिक्स यासाइकॉलजी ले लेते हैं। आर्ट्स वाले मैथ्स , साइकॉलजी और इकनॉमिक्स ले लेते हैं।

- 11 वीं ही नहीं , किसी भी कोर्स में सब्जेक्ट चुनते वक्त एक नियम का ध्यान हमेशा रखना चाहिए। यह नियम है सब्जेक्टमें दिलचस्पी और स्टूडेंट की उसमें परफॉर्मेंस। जिस सब्जेक्ट में दिलचस्पी हो , उसे ही चुनें। कोई भी सब्जेक्ट दोस्तों यादूसरों की देखादेखी चुनें। अगर किसी सब्जेक्ट में आप आगे की पढ़ाई करने या करियर बनाने को लेकर ज्यादा उत्सुकनहीं हैं , तो उस सब्जेक्ट को चुनने का कोई मतलब नहीं है।

- किसी भी कॉम्बिनेशन को चुनते वक्त आमतौर पर यह देखा जाता है कि इसे लेने से हमारे सामने कौन - से रास्ते खुल रहेहैं। यह देखना जितना महत्वपूर्ण है , उतना ही महत्वपूर्ण यह देखना भी है कि इस कॉम्बिनेशन को लेने से आपके कौन - सेरास्ते बंद हो जाएंगे।

- 11 वीं के बच्चे मोटे तौर पर यह फैसला नहीं कर पाते कि उन्हें आगे करना क्या है। किसी एक चीज को चुनना मुश्किलहो सकता है। ऐसे में बेहतर है कि अपनी पसंद के पांच ऑप्शन चुन लें और फिर ऐसे कॉम्बिनेशन लें जिनसे ये पांच रास्तेबंद होते हों।

वोकेशनल सब्जेक्ट का चक्कर
- कुछ वोकेशनल स्ट्रीम भी होती हैं। वोकेशनल सब्जेक्ट नंबर तो दिलाते हैं , लेकिन डीयू में दाखिले में मुश्किल करते हैं।डीयू वोकेशनल सब्जेक्ट में सिर्फ एक सब्जेक्ट को बेस्ट फोर में शामिल करती है , इसलिए अगर आपको आगे वोकेशनलसब्जेक्ट की पढ़ाई नहीं करनी है तो 11 वीं में कम - से - कम वोकेशनल सब्जेक्ट रखें।

- 11 वीं में वोकेशनल सब्जेक्ट ज्यादा रखें , नहीं तो ग्रैजुएशन पास या ऑनर्स कोर्स में दाखिला लेने में तकलीफ होगी।एक से ज्यादा वोकेशनल सब्जेक्ट तभी चुनें , जब आपको आगे वोकेशनल सब्जेक्ट में ऐडमिशन लेना हो। ऐसे स्टूडेंट्स केलिए डीयू का कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज है। ध्यान रहे , ऐकडेमिक कोर्स में ऐडमिशन लेते वक्त एक ही वोकेशनलकोर्स को बेस्ट फोर में शामिल किया जाता है।

- अगर आप ऑनर्स कोर्स में ऐडमिशन लेने जा रहे हैं तो वोकेशनल सब्जेक्ट को बेस्ट फोर में शामिल नहीं किया जाता।

लैंग्वेज का फेर
- अगर आपने कोई एक लैंग्वेज पढ़ी है तो उसे बेस्ट फोर में शामिल किया जा सकता है। अगर आपने कोई लैंग्वेज कोर याइलेक्टिव लेवल पर पढ़ी है , तो उसे बेस्ट फोर में शामिल किया जा सकता है। इसके अलावा , कोई और लैंग्वेज इलेक्टिवलेवल पर पढ़ी है और बेस्ट फोर में चाहते हैं तो इसकी भी इजाजत है। ऐसे में इसे ऐकडेमिक सब्जेक्ट मान लिया जाता है।

- साइंस स्ट्रीम में किसी भी कोर्स में ऐडमिशन चाहते हैं तो आपको इंग्लिश पढ़ी होनी चाहिए। साइंस की पूरी पढ़ाईइंग्लिश में है इसलिए उसके बिना काम नहीं चल सकता।

साइंस वालों के लिए
- कई स्टूडेंट्स साइंस के साथ इकनॉमिक्स ले लेते हैं। उन्हें लगता है कि इंजिनियरिंग के बाद जब वे मैनेजमेंट की पढ़ाईकरेंगे तो उसमें इकनॉमिक्स की पढ़ाई उनके काम आएगी , लेकिन ऐसा होता नहीं है क्योंकि 12 वीं में इकनॉमिक्स मेंकाफी बेसिक पढ़ाई होती है , जो मैनेजमेंट के दौरान बहुत ज्यादा काम नहीं आती। हां , अगर मैथ्स और इकनॉमिक्स साथ- साथ लिए जाएं तो यह अच्छा कॉम्बिनेशन है।

- साइंस स्ट्रीम के बच्चे साइंस के अलावा कॉमर्स और आर्ट्स में जा सकते हैं , कॉमर्स स्ट्रीम वाले कॉमर्स के अलावा आर्ट्स मेंजा सकते हैं। लेकिन यह बात भी है कि साइंस के बच्चे अगर कॉमर्स में जाएंगे तो उन्हें कॉमर्स वालों से ज्यादा मार्क्स कीजरूरत होगी।

- साइंस के स्टूडेंट हैं और आपने इकनॉमिक्स या साइकॉलजी पढ़ी है तो आपको बीए ऑनर्स इकनॉमिक्स और बीए ऑनर्ससाइकॉलजी में प्रेफरेंस मिलेगा , लेकिन शर्त वही है कि बारहवीं में मैथ्स जरूर पढ़ा हो।

- कंप्यूटर साइंस में अगर कोई कोर्स करना चाहते हैं और आपने मैथ्स इंग्लिश नहीं पढ़ी है , तो नहीं कर सकते। कंप्यूटरसाइंस में उन स्टूडेंट्स को ऐडमिशन मिल सकता है , जिन्होंने भले ही आर्ट्स रखी हो , लेकिन उनके पास मैथ्स औरइंग्लिश सब्जेक्ट रहे हों।

- बीएससी ऑनर्स ( मैथ्स , स्टैट और कंप्यूटर साइंस ) में दाखिला तीनों स्ट्रीम के बच्चे ले सकते हैं , बशर्ते उन्होंने 12 वीं मेंमैथ्स और इंग्लिश पढ़ी हो।

कॉमर्स वालों के लिए
- आमतौर पर स्टूडेंट्स कॉमर्स और मैथ्स साथ में नहीं लेते। यह एक बड़ी गलती है। दरअसल , कॉमर्स का आधार मैथ्स हीहै इसलिए जो स्टूडेंट्स 11 वीं में कॉमर्स स्ट्रीम चुन रहे हैं , उन्हें मैथ्स जरूर लेना चाहिए। जो बच्चे मैथ्स में कमजोर हैं ,उन्हें कॉमर्स स्ट्रीम से बचना चाहिए।

- 12 वीं के बाद जो स्टूडेंट्स कोई भी ऑनर्स कोर्स करना चाहते हैं , उन्होंने अगर उस कोर्स से संबंधित सब्जेक्ट पढ़े हैं , तोफायदा होगा। अगर कोई पॉलिटिकल साइंस ऑनर्स करना चाहता है और उसने 12 वीं में पॉलिटिकल साइंस पढ़ी है तोउसे ऐडमिशन के वक्त कटऑफ में दो से चार फीसदी की छूट मिल सकती है।

- बीकॉम ऑनर्स करना चाहते हैं , तो 12 वीं में मैथ्स कंपल्सरी है। मैथ्स नहीं पढ़ा है तो बीकॉम ऑनर्स में ऐडमिशन नहींमिलेगा। इकनॉमिक्स ऑनर्स के लिए भी मैथ्स जरूरी है।

महत्वपूर्ण है मैथ्स
- अगर आप 12 वीं के बाद डीयू के ऐकडेमिक कोर्स में एडमिशन चाहते हैं तो 12 वीं में मैथ्स एक महत्वपूर्ण सब्जेक्ट है।जहां एक तरफ सिर्फ मैथ्स का होना आपके लिए कई दरवाजे बंद कर सकता है , वहीं मैथ्स पढ़ने से आपके लिए कईऔर रास्ते खुल सकते हैं।

- डीयू में कई ऐसे कोर्स हैं , जिनमें मैथ्स कंपल्सरी है। मैथ्स नहीं है तो इनमें ऐडमिशन नहीं मिलता। ये कोर्स हैं : बीएससी( कंप्यूटर साइंस , मैथ्स , स्टैट ), बीबीएस , बीएफआईए , बीबीई , बीए ऑनर्स इकनॉमिक्स , बीकॉम ऑनर्स ( चुनिंदाकॉलेजों को छोड़कर )

- जिन स्टूडेंट्स ने 11 वीं में ही यह तय कर लिया है कि उन्हें 12 वीं के बाद इकनॉमिक्स ( ऑनर्स ) या बीकॉम ( ऑनर्स )करना है , उन्हें 11 वीं में मैथ्स जरूर रखना चाहिए। डीयू का इकनॉमिक्स ऑनर्स कोर्स मैथ्स ओरिएंटेड है। अगर मैथ्सनहीं पढ़ा है तो इसे पूरा नहीं कर सकते।

- कई मामलों में बच्चे थोड़ी स्मार्टनेस भी दिखाते हैं। मसलन कोई बच्चा पायलट बनना चाहता है , लेकिन उसका मैथ्सकमजोर है। ऐसे में वह 11 वीं में मैथ्स को छठे एक्स्ट्रा सब्जेक्ट के तौर पर रख सकता है। पायलट बनने के लिए 12 वीं मेंमैथ्स का होना जरूरी है। ऐसे में यह स्टूडेंट पायलट बनने के रास्ते पर आगे बढ़ सकता है , क्योंकि इस बात से कोई फर्कनहीं पड़ता कि मैथ्स छठे सब्जेक्ट के तौर पर रखा गया है।

स्ट्रीम चेंज करनी हो गर ...
- 12 वीं के बाद स्ट्रीम में बदलाव करने वाले स्टूडेंट्स को कटऑफ में नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में 11 वीं में ही यहतय कर लेना चाहिए कि आपको आगे की पढ़ाई किस स्ट्रीम में करनी है और उसी के आधार पर सब्जेक्ट्स का चुनावकरना चाहिए। मान लीजिए किसी के पास 12 वीं में कॉमर्स है और डीयू में ऐडमिशन के लिए वह आर्ट्स में ऐडमिशनचाहता है तो उसकी कटऑफ में कटौती हो जाएगी।

- वैसे कुछ मामलों में स्ट्रीम चेंज करने से फायदा भी हो जाता है। मसलन इकनॉमिक्स ऑनर्स में साइंस के स्टूडेंट्स कोफायदा मिल जाता है , बशर्ते उन्होंने 12 वीं में साइंस के साथ मैथ्स या इकनॉमिक्स भी पढ़ी हो।

- 11 वीं में आपने जो सब्जेक्ट चुने हैं , अगर उन्हें समझने में आपको दिक्कत रही है या आपको लगता है कि आपनेगलत कॉम्बिनेशन का चुनाव कर लिया है तो आप सब्जेक्ट बदल भी सकते हैं। आमतौर पर सेशन शुरू होने के पहले दो -तीन महीने तक स्कूल ऐसा करने की इजाजत दे देते हैं।

एक्सपर्ट्स पैनल
डॉक्टर गुरप्रीत सिंह टुटेजा , डिप्टी डीन , स्टूडेंट्स वेलफेयर , डीयू
परवीन मल्होत्रा , करियर काउंसलर

Wednesday, April 13, 2011

ब्लड

तमाम बीमारियों और ऑपरेशनों में ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ जाती है। ऐसे में मरीज के घरवालों के सामने असली चुनौती यह होती है कि वे सेफ ब्लड का इंतजाम कहां से करें। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि मरीज को ब्लड चढ़ाने का प्रॉसेस ठीक तरीके से पूरा हो और उसमें पूरी तरह से सावधानी बरती जाए। अगर ब्लड की जरूरत पड़ जाए तो किन बातों का रखें ध्यान, एक्सपर्ट्स से बात करके बता रहे हैं नरेश तनेजा...

अगर किसी मरीज को ब्लड या उसके दूसरे कम्पोनेंट्स की जरूरत है, तो सबसे पहले डोनर का इंतजाम करना पड़ता है, जिससे ब्लड के बदले ब्लड दिया जा सके। इसे रिप्लेसमेंट डोनेशन कहते हैं। वैसे, लॉयंस व रोटरी ब्लड बैंक सिर्फ प्रॉसेसिंग चार्ज लेकर बिना रिप्लेसमेंट के ही ब्लड दे देते हैं। इमर्जेंसी में दूसरे ब्लड बैंक भी बिना डोनेशन के ही ब्लड दे देते हैं।

तरीका क्या है
-डॉक्टर के ब्लड की जरूरत बताने के बाद अस्पताल में ही किसी ब्लड बैंक का फॉर्म मिल जाता है। इस फॉर्म को लेकर मरीज के घरवाले डॉक्टर से भरवा लें। फॉर्म पूरा भरा होना चाहिए। इस फॉर्म में मरीज की उम्र, सेक्स, ब्लड ग्रुप, जो ब्लड ग्रुप चाहिए के अलावा और भी कई जानकारियां होती हैं। इस फॉर्म पर डॉक्टर के साइन और अस्पताल की मुहर लगवा लें।

- इसके दौरान मरीज के ब्लड का सैंपल लिया जाता है। यह सैंपल दो ट्यूबों में लिया जाना चाहिए। एक प्लेन ट्यूब में 3 एमएल और दूसरी ईडीटीए केमिकल वाली ट्यूब में 2 से 3 एमएल। दो ट्यूब इसलिए ली जाती हैं, ताकि जांच में समस्या होने पर दोबारा सैंपल लेने न भेजना पड़े। ब्लड बैंक सात दिन तक मरीज के ब्लड का सैंपल संभालकर रखते हैं, जिससे मरीज को किसी तरह का रिएक्शन होने पर उसके ऑरिजिनल ब्लड की जांच की जा सके।

-सैंपल ब्लड बैंक में आ जाने पर सबसे पहले देखा जाता है कि किस ग्रुप का ब्लड चाहिए। फिर लाए गए सैंपल के ब्लड ग्रुप की जांच होती है। उसके बाद ऐंटीबॉडी स्क्रीनिंग की जाती है। अब ब्लड बैंक में मौजूद उसी ग्रुप के ब्लड से सैंपल का क्रॉस मैच होता है। पूरी तरह कंफर्म करने के लिए एक बार फिर बैंक में मौजूद खून की जांच करते हैं। फिर से दोनों तरह के ब्लड को मैच किया जाता है। इस काम में एक से डेढ़ घंटा लग सकता है। इसके बाद ब्लड इश्यू किया जाता है।

-इश्यू करते वक्त ब्लड बैग पर स्टिकर लगाया जाता है और क्रॉसमैच की रिपोर्ट भी दी जाती है। ऐसे में ब्लड बैग और फॉर्म पर लिखे डिटेल्स का मिलान कर लेना चाहिए। मसलन: मरीज का नाम, ब्लड ग्रुप व सीरियल नंबर और दूसरी सूचनाएं।

-अस्पताल में नर्स या डॉक्टर फिर से ब्लड बैग और मरीज के फॉर्म के डिटेल चेक करते हैं और ब्लड चढ़ाना शुरू कर देते हैं।

-ब्लड चढ़ जाने के बाद मरीज नॉर्मल तरीके से खाना खा सकता है, चाय व पानी पी सकता है। ठीक महसूस करे तो नहा भी सकता है।

-सरकारी ब्लड बैंकों में क्रॉस मैचिंग या टेस्टिंग के लिए 850 रुपये लिए जाते हैं। ब्लड के कंपोनेंट्स के लिए 400 रुपये चार्ज किए जाते हैं। इसमें हिपेटाइटिस बी, सी, एचआईवी, वीडीआरएल आदि संक्रामक रोगों की जांच और ब्लड बैग का खर्च भी शामिल होता है। प्राइवेट ब्लड बैंकों में अलग-अलग टेस्ट भी साथ में करते हैं, इसलिए उनके चार्जेज भी अलग-अलग हैं। इन्हें सर्विस चार्ज कहा जाता है। वहां ये चार्ज 5 हजार रुपये तक भी हो सकते हैं।

सावधानी
-बेहद जरूरी न हो, तो ब्लड चढ़वाने से बचना चाहिए।

-हमेशा लाइसेंस वाले या प्रमाणित ब्लड बैंक से ही ब्लड लें।

-ब्लड बैग पर लिखी एक्सपायरी डेट देख लें।

-ब्लड वाले बैग को साफ हाथों से छुएं।

-ब्लड ले जाते वक्त सावधानी रखें कि उसका तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक बना रहे। इसके लिए थर्मोकोल के बॉक्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। ब्लड को बर्फ के साथ नहीं रखना चाहिए।

-अगर ब्लड चढ़ने में कुछ देर हो तो बैग ले जाकर अस्पताल के रेफ्रिजरेटर में रखवा देना चाहिए। चढ़ाने से पहले देख लें कि मरीज के लिए जो ब्लड लाया गया है, वही चढ़ाया जा रहा है या नहीं। इसके लिए ब्लड बैग पर लिखे डिटेल्स चेक कर लें।

-देख लेना चाहिए कि ब्लड में किसी तरह की क्लॉटिंग या जमाव तो नहीं है। कई बार बैग में प्लाज्मा ऊपर रह जाता है और रेड सेल नीचे जमा हो जाते हैं। ऐसे ब्लड को चढ़ाने लायक नहीं माना जाता। ऐसा तापमान में बदलाव आने के कारण होता है।

-आम धारणा है कि ब्लड चढ़ाने से पहले उसे कमरे के तापमान तक गर्म कर लेना चाहिए, पर विशेषज्ञों का कहना है कि ब्लड को वॉर्म करने की जरूरत नहीं होती।

-आमतौर पर ब्लड की 10 से 20 बूंदें प्रति मिनट के हिसाब से चढ़ाई जाती हैं पर मरीज की हालत के मुताबिक उसे कम-ज्यादा भी किया जा सकता है। पहले आधे घंटे निगरानी की जरूरत होती है, इसलिए ब्लड धीरे-धीरे चढ़ाया जाता है, जिससे कोई रिएक्शन होने पर तुरंत काबू पाया जा सके । ज्यादातर रिएक्शन पहले आधे घंटे में ही होते हैं। मसलन: एलर्जी, चकत्ते पड़ना, हल्का बुखार, उल्टी आना, घबराहट, कंपकंपी या जहां सुई लगी है, वहां दर्द होना। मरीज का बीपी भी कम हो सकता है।

-अगर लगे कि मरीज को कंपकंपी, बुखार या खारिश जैसी कोई शिकायत हो रही है, तो ब्लड चढ़ाना रोक दें। ऐसा ब्लड ज्यादा चढ़ाने से किडनी तक में दिक्कत हो सकती है। हटाए गए ब्लड को दोबारा नहीं चढ़ाया जाता और उसे वापस ब्लड बैंक भेजा जाता है।

-खून चढ़ाने पर कुछ संक्रामक रोग भी हो सकते हैं जैसे वायरल बुखार या हिपेटाइटिस बी, सी, मलेरिया, सिफलिस और एचआईवी आदि।

-डोनर का खून लेने के बाद उसमें इन बीमारियों की जांच ब्लड बैंक में अच्छी तरह से की जाती है, तो भी जीरो रिस्क ब्लड ट्रांसफ्यूजन संभव नहीं होता। इसीलिए जब बेहद जरूरी हो, तभी खून चढ़वाना चाहिए।

-ध्यान रखें कि मरीज को गलत ग्रुप का ब्लड न चढ़ जाए। यह जानलेवा भी हो सकता है। इसके लिए सैंपल वाली टेस्ट ट्यूबों पर ब्लड निकालने वाले ड्यूटी डॉक्टर के सिग्नेचर होने जरूरी हैं। जांच लें कि जो जानकारी लेबल पर है, वही फॉर्म पर हो।

-ब्लड चढ़ाने के साथ कोई दूसरी दवाई उस नली से नहीं चढ़ानी चाहिए। उससे रिएक्शन होने का खतरा रहता है।

-जिस पाइप से ब्लड चढ़ाया जाना है, उसमें हवा न भर जाए। ब्लड के साथ हवा भी चढ़ा दी जाए तो हार्ट अटैक हो सकता है और जान भी जा सकती है।

-जिन लोगों को बार-बार ब्लड की जरूरत पड़ती है, उनमें यह देख लेना चाहिए कि ब्लड चढ़ाने से एलर्जी तो नहीं हो रही।

ये भी जानिए
दो टाइप के बैग आते हैं। उनमें रखे गए ब्लड की एक्सपाइरी डेट या लाइफ अलग-अलग होती है। एक बैग में 35 दिन एक बैग में 42 दिन ब्लड चलता है। जिस बैग में 42 दिन चलता है उसमें एड सोल नाम का लिक्विड डाला जाता है। वह थोड़ा महंगा पड़ता है।

कौन-कौन सी जांच
जब ब्लड दिया जाता है तो उस पर लगे लेबल में लिखा रहता है कि इसकी एचआईवी, हेपटाइटिस बी-सी, वीडीआरएल और मलेरिया की जांच की गई है।

कितने दिन पहले
अगर कोई अपनी सर्जरी के लिए अपना ब्लड देना चाहता हो और उसका हीमोग्लोबिन ठीक रेंज में हो, सर्जरी भी नॉर्मल हो तो एक सप्ताह या 15 दिन पहले भी ब्लड ले सकते हैं। लेकिन अगर हीमोग्लोबिन कम हो तो एक महीना पहले लेते हैं। मूलरूप से यह देखा जाता है कि किसी का हीमोग्लोबिन किस रेंज में है और ऑपरेशन जिसके लिए ब्लड चाहिए वह किस लेवल का है।

टेस्टिंग में वक्त
ब्लड की टेस्टिंग एक दिन में हो जाती है।

कॉमन इन्फेक्शन
ब्लड चढ़वाने से एचआईवी, हेपटाइटिस-बी व सी, सिफलिस और मलेरिया आदि बीमारियां हो सकती हैं। ब्लड की जांच में इन्हें निगेटिव पाए जाने पर भी नहीं कहा जा सकता कि आगे जाकर ये बीमारियां नहीं होंगी। इस मामले में सौ प्रतिशत सेफ्टी का दावा नहीं किया जा सकता।

ब्लड की सेफ्टी
सौ प्रतिशत सेफ ब्लड का दावा कोई नहीं कर सकता। बस आप उन्हीं बैंकों से ब्लड लें, जिनके पास लाइसेंस हो।

संस्थाएं जहां से ब्लड लिया जा सकता है
इंडियन रेडक्रॉस ब्लड बैंक
पता: 1, रेडक्रॉस रोड, नई दिल्ली।
फोन: 23711551
वेबसाइट: www.indianredcross.org
कब: हफ्ते के सातों दिन 24 घंटे।

लॉयंस क्लब ब्लड बैंक
पता: एके 100, लॉयंस ब्लड बैंक, एएल ब्लॉक के पास, शालीमार बाग, नई दिल्ली।
फोन : 97178-97500, 97178-97520, 4225-8080, 4225-8494
वेबसाइट : www.lionsbloodbank.org
ईमेल : lionsbloodbank@hotmail.com
कब: सातों दिन फोन करके जाएं।

सेल्फलेस सर्विस सोसायटी
युवाओं द्वारा बनाई गई यह संस्था वेबसाइट के माध्यम से काम करती है। संस्था के सेक्रेटरी अंशु का कहना है कि यहां से बड़ी संख्या में डोनर्स जुड़े हैं। ब्लड डोनेट करने और ब्लड लेने के लिए पूरे भारत में इस वेबसाइट से संपर्क किया जा सकता है।
वेबसाइट: www.selflessservice.org
ईमेल: service.selfless@gmail.com
फोन: 99999-96860
कब: सातों दिन किसी भी वक्त।

रोटरी क्लब ब्लड बैंक
पता: 56, 57 तुगलकाबाद इंस्टिट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली।
फोन: 29054066/7/8/9
वेबसाइट: www.rotarybloodbank.org
कब: सातों दिन 24 घंटे।

स्माइल फॉर ऑल
पता: पीपी 8, पीतमपुरा, गोपाल मंदिर के नजदीक, नई दिल्ली।
वेबसाइट: www.smileforall.org
ब्लड ऑन डिमांड उपलब्ध है। देश में कहीं भी कभी भी जरूरत पड़ने पर निशुल्क ब्लड डोनर मुहैया कराया जाता है। संस्था के अध्यक्ष जी. एस. कपूर के मुताबिक, दिन-रात कभी भी इन नंबरों पर संपर्क किया जा सकता है: 92121-31416, 92666-66666, 92666-16161, 92666-36363. इस संस्था में ब्लड डोनर के रूप में भी आप अपना नाम लिखवा सकते हैं।

सत्य साईं ऑर्गनाइजेशन
वेबसाइट: www.saidelhi.org
श्री सत्य साई सेवा ऑर्गनाइजेशन के दिल्ली इंचार्ज जतिंदर चीमा का कहना है कि ब्लड लेने वाले इस वेबसाइट पर जाकर अपनी जरूरत बताकर ब्लड ले सकते हैं।

खून बढ़ाने के तरीके
होम्योपथी
-जब ब्लड की कमी किसी भी तरह के एनीमिया से हो रही हो, तो इनमें से एक दवा लें: फैरम मैट-30 ( Ferrum Mat) , फैरम फॉस-30 ( Ferrum Phos) , चाइना-30 (China) या फॉस्फोरस-30 ( Phosphorus )

- अगर ब्लड कैंसर, ल्यूकेमिया या मल्टिपल मायलोमा की वजह से ब्लड में कमी आ रही हो तो इनमें से कोई एक दवा लें : एक्सरे-30 ( Xray) , रेडियम ब्रॉम-30 ( Radium Brom) या काबोर्नियम सल्फ-30 ( Carboneum Sulph )

- अगर पौष्टिक भोजन की कमी से ब्लड में कमी हो रही हो तो इनमें से एक लें: आर्स. अल्बम-30 ( Ars. Album) , कल्केरिया फॉस-30 ( Calc. Phos) या फॉस्फोरिक एसिड-30 ( Phosphoric Acid )

दवा लेने का तरीका: कोई भी दवा बिना डॉक्टर की सलाह के न लें। दवा की चार से पांच गोली दिन में तीन बार लें।

नेचरोपथी
नेचरोपथी में ऐसी कई क्रियाएं हैं, जिन्हें करने से शरीर में खून की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है और बेहतर सेहत पाई जा सकती है। इनमें से खास हैं:

- 15 से 20 दिन तक रोजाना मिट्टी की पट्टी पेट पर रखें। ऐसा 20 मिनट के लिए रखना चाहिए। इसे खाली पेट करें।

-सुबह खाली पेट दो गिलास पानी पीकर कटि स्नान करें। इसके लिए पानी से भरे टब में इस तरह से बैठ जाएं कि पूरा पेट पानी में डूब जाए। ऐसा 15-20 मिनट तक रोजाना एक महीने तक करना चाहिए। टब में बैठने के दौरान पेट की हल्के हाथ से मालिश करें। बाहर निकलने के बाद ऊपर-नीचे के दांत दबाकर बाथरूम जाएं।

-मलमल के कपड़े की छह फुट की पट्टी बना लें। उसे गीला करके अपने पेट पर 10 मिनट के लिए लपेट लें। बाद में पोंछ लें। यह क्रिया खाली पेट करनी है।

-खाना खाने के बाद आधे घंटे के लिए गरम पानी की बोतल को पेट पर रखने से भोजन तुरंत पचता है। इससे खून बनता है।

-खाना खाने से पहले पैरों को जरूर धोएं। पैरों को भिगोने से लिवर का फंक्शन ठीक होने लगता है।

-इन क्रियाओं को किसी योग्य नेचरोपैथ से सीखकर ही करना चाहिए।

मुद्रा विज्ञान
प्राण मुद्रा: अंगूठा और आखिरी दोनों उंगलियों को मिलाने से बनती है प्राण मुद्रा। इस मुद्रा का अभ्यास उठते-बैठते कभी भी कर सकते हैं। इस मुद्रा लगातार अभ्यास करने से प्राणशक्ति का संचार होता है और खून बढ़ता है। एक महीने लगातार की जाए, तो शरीर की कमजोरी दूर होती है।

शक्तिवर्धिनी मुद्रा: यह सिर्फ बैठकर ही की जा सकती है। इसमें दोनों हाथों का इस्तेमाल होता है। पहले दोनों हाथों को इस तरह उलटा करें कि उंगलियों पर उंगलियां फिट बैठ जाएं। बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली दाएं हाथ की पहली उंगली पर आएगी। इस मुद्रा को दिनभर में अलग-अलग समय पर किया जा सकता है। कुल मिलाकर 45 मिनट तक करें। इससे कुछ ही दिनों में खून में आरबीसी, डब्ल्यूबीसी और प्लाज्मा संतुलन में आ जाते हैं।

योग
शरीर में खूनहीं बन रहा है तो इसका मतलब है कि आपका पाचन तंत्र और लिवर अपना काम ठीक से नहीं कर रहे। शरीर की धातुएं ठीक से काम नहीं कर रहीं। खून न बनने के इसके अलावा और भी कई कारण हो सकते हैं।

-अगर पाचन तंत्र में गड़बड़ी की वजह से खून न बन रहा हो तो रोजाना बहुत धीरे-धीरे 5-7 मिनट तक कपालभाति, लेटकर कटिचक्रासन, एक-एक पैर से पवनमुक्तासन, भुजंगासन व मण्डूकासन करें। इन्हें इसी क्रम से करें। इसके बाद अनुलोम-विलोम प्राणायाम व भस्त्रिका प्राणायाम धीरे-धीरे करें।

-अगर बोनमैरो में खराबी या कैंसर की वजह से खून न बन रहा हो तो 10-15 तुलसी के पत्तों का पेस्ट बनाकर रोजाना सुबह खाली पेट लें। साथ में बहुत धीरे-धीरे कपालभाति, अनुलोम-विलोम व भस्त्रिका करें।

-किसी भी वजह से खून की कमी हो, मन में सकारात्मक भाव बनाए रखें और खुश रहें। नकारात्मक भाव या नाखुश रहने से खून कम हो जाता है। पुरानी समस्याओं से बाहर निकलें। प्रकृति के करीब जाने की कोशिश करें।

सवाल-जवाब
कौन-सा ग्रुप किसे ब्लड दे सकता है और किसे नहीं?
ओ ग्रुप यूनिवर्सल डोनर है। ओ पॉजिटिव वाला सभी पॉजिटिव ग्रुप वाले लोगों को खून दे सकता है। ओ नेगेटिव वाला सभी को दे सकता है। आमतौर पर क्रॉस मैचिंग करके ही सेम ग्रुप वाले को ब्लड दिया जाता है। मैचिंग के वक्त ऐंटीबॉडीज की भी जांच कर लेते हैं। अगर कोई भी ग्रुप मैच नहीं हो रहा तो ओ नेगेटिव बेस्ट है। इमरजेंसी में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे किसी तरह का नुकसान नहीं होता।

किन बीमारियों में ब्लड लेने या चढ़ाने की जरूरत पड़ती है?
ऐसी कई बीमारियां और स्थितियां हैं जिनमें आमतौर ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ ही जाती है। इनमें से कुछ खास बीमारियां और स्थितियां इस तरह हैं: एक्सिडेंट के मामले, डिलिवरी संबंधी केस, किसी भी तरह की ब्लीडिंग, सभी बड़े ऑपरेशन, ऑर्गन या हिप ट्रांसप्लांटेशन, थैलीसिमिया, एप्लास्टिक एनीमिया, कैंसर के इलाज या कीमोथेरेपी के वक्त, डायलिसिस, हीमोफीलिया और संबंधित रोगों में, डेंगू, प्लेटलेट्स और प्लाज्मा के रेड सेल्स की कमी होने और डब्ल्यूबीसी के रूप में। इसके अलावा और भी बहुत-सी बीमारियां हैं जिनमें ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ती है।

क्या अपने लिए अपना ब्लड यूज कर सकते हैं?
हां, ऐसा मुमकिन है। कोई शख्स अगर चाहे तो अपनी सर्जरी में अपना ही खून इस्तेमाल कर सकता है। पहले से तय ऑपरेशनों और सर्जरी के मामलों में कोई शख्स सर्जरी से चार-पांच दिन पहले ब्लड बैंक जाकर अपना ब्लड जमा करवा सकता है। इसके बाद ऑपरेशन के दौरान वह खून उसके काम आ सकता है। ऐसा अक्सर आसानी से न मिलने वाले नेगेटिव ग्रुप के ब्लड वाले मामलों में किया जा सकता है।

क्या-क्या चेक करते हैं ब्लड में?
जब डोनर से ब्लड लिया जाता है, तो उसकी नीचे लिखी जांच की जाती हैं:
-एचआईवी-1 और 2

-हिपेटाइटिस बी व सी

-वीडीआरएल

-मलेरिया आदि

जब उसे मरीज के लिए तैयार किया जाता है, तो उसकी क्रॉस मैचिंग मरीज के सैंपल के साथ की जाती है। मरीज को देते वक्त ब्लड में इन संक्रामक रोगों की जांच नहीं होती है।

ब्लड बढ़ता किन चीजों से है?
खून की मात्रा बढ़ाने में हेल्दी लाइफस्टाइल का बड़ा योगदान है। ऐसे तमाम नुस्खे और दवाएं हैं जिनसे शरीर में खून की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। सबसे अहम बात यह है कि खाना ऐसा खाना चाहिए जिसमें आयरन की मात्रा ज्यादा हो जैसे हरी पत्तेदार सब्जियां, चना, गुड़, फल व अंडे आदि। दरअसल, अंडों में फोलिक एसिड भरपूर मात्रा में होता है। फोलिक एसिड का ब्लड बढ़ाने में काफी योगदान है।

ब्लड कम किन वजहों से होता है?
ऐसी तमाम वजहें हैं, जिनसे किसी इंसान के शरीर में खून की मात्रा कम हो जाती है:

-ब्लीडिंग जैसे बवासीर, गैस्ट्रिक अल्सर आदि।

-कई बार अंदरूनी तौर पर ब्लीडिंग होती रहती है और मरीज को पता ही नहीं चलता। ऐसे में वह एनीमिया से ग्रस्त हो जाता है।

-कई मामलों में अच्छा पौष्टिक भोजन न लेने से भी शरीर के अंदर ब्लड कम बनता है। दरअसल, गलत खानपान की वजह से आंतों की आयरन ग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है और एनीमिया हो जाता है।

क्या ब्लड चढ़वाने से बचा भी जा सकता है?
कई स्थितियों में ब्लड चढ़वाने से बचा भी जा सकता है। अगर किसी शख्स को एनीमिया या कमजोरी है तो वह ब्लड न ही चढ़वाए तो ही ठीक है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वे अपना एचबी यानी हीमोग्लोबिन बिना ब्लड चढ़वाए दूसरे तरीकों से चढ़ाने की कोशिश करें। अगर किसी को किसी तरीके की ब्लीडिंग हो रही है तो सबसे पहले उस ब्लीडिंग को रोकने की कोशिश करें।

एक्सर्पट्स पैनल
डॉ. वनश्री सिंह, डायरेक्टर, रेडक्रॉस ब्लड बैंक
डॉ. सुनील देवानी, डायरेक्टर ट्रांसफ्यूजन, कालरा हॉस्पिटल
डॉ. पूनम सिंह, डायरेक्टर ब्लड बैंक, लायंस क्लब
मोहन लाल परूथी, टेक्निकल एक्सपर्ट (ब्लड), लायंस क्लब
आचार्य विक्रमादित्य, मुदा, नेचरोपथी व आयुर्वेद विशेषज्ञ
डॉ. सुरक्षित गोस्वामी, योग गुरु

Tuesday, April 12, 2011


ऐसा कहते हैं कि यदि पति-पत्नी के बीच छोटी-छोटी नोंक-झोंक उनके बीच प्रेम को बढ़ाती हैं। यह बात कई बार विपरित फल देने वाली साबित होती है जब छोटे-छोटे झगड़े बड़ा रूप ले लेते हैं।


यदि बार-बार ऐसा होने लगे तो वैवाहिक जीवन काफी मुश्किल सा लगने लगता है। इस प्रकार की परिस्थितियों से बचने के लिए वास्तु शास्त्र के अनुसार कई ऐसी टिप्स बताई गई हैं जिनसे पति और पत्नी दोनों के बीच सदैव प्रेम बना रहेगा और साथ धन संबंधी परेशानियां भी दूर होंगी।

बेडरूम का वातावरण खुशनुमा कैसे बनाएं? इस संबंध में वास्तु और फेंगशुई की यह टिप्स अपनाएं-

पति-पत्नी अपने बेडरूम में राधा और श्रीकृष्ण का प्रेम प्रदर्शित करता हुआ फोटो लगाएं। इस चित्र के सकारात्मक प्रभाव से दोनों का जीवन में प्रेम और खुशियों का संचार होगा।

बेडरूम में लाल, गुलाबी रंगों के पर्दे, कुशन, खिड़कियों, चादर, रजाई आदि का उपयोग ज्यादा से ज्यादा करें। लाल रंग प्रेम को दर्शाता है।

प्यार बढ़ाने के लिए सिरामिक की बनी विंड चाइम्स लगाएं। इसकी मधुर ध्वनि मन को हमेशा शांत बनाए रखती है।

बेडरूम सजाकर रखें, यहां कबाड़ जमा होने दें। ध्यान रखें की यहां साइड टेबल पर कोई भी वस्तु धूल भरी, बेतरतीब और बिखरी हुई हो।

लवबर्ड प्रेम के प्रतीक हैं इनकी छोटी मूर्तियों का जोड़ा अपने बेडरूम में रखें।

बेडरूम में दक्षिण-पश्चिम दिशा में दिल की आकृति की घड़ी लगाएं।

पति-पत्नी के प्रतीक के रूप में बेडरूम में दो सुंदर सजावटी गमले रखें।